Ad

यमराज को लेना पड़ा विदुर रुप में अवतार


Vidur Ke Purv Janm Ki Kahani | मैत्रेय जी ने विदुर से कहा, ‘‘मांडव्य ऋषि के शाप के कारण ही तुम यमराज से दासी पुत्र बने। कथा कुछ इस प्रकार है-

एक बार कुछ चोरों ने राजकोष से चोरी की। चोरी का समाचार फैला। राज कर्मचारी चोरों की खोज में भागे। चोरों का पीछा किया। चोर घबरा गए। माल के साथ भागना मुश्किल था। मार्ग में मांडव्य ऋषि का आश्रम आया। चोर आश्रम में चले गए। चोरों ने चोरी का माल आश्रम में छिपा दिया और वहां से भाग गए।

सैनिक पीछा करते हुए मांडव्य ऋषि के आश्रम में आ गए। छानबीन की। चोरी का माल बरामद कर दिया। मांडव्य ऋषि ध्यान में थे। राज कर्मचारियों की भाग-दौड़ की आवाज से उनका ध्यान भंग हुआ। उन्होंने मांडव्य ऋषि को ही चोर समझा। उन्हें पकड़ लिया और राजा के पास ले गये, राजा ने फांसी की सजा सुना दी।

मांडव्य ऋषि को वध स्थल पर लाया गया। वह वहीं गायत्री मंत्र का जाप करने लगे। राज कर्मचारी, उन्हें फांसी देते, लेकिन मांडव्य ऋषि को फांसी न लगती कर्मचारी और स्वयं राजा भी हैरान हुआ। ऐसा क्यों ? फांसी से तो कोई बचा नहीं, लेकिन इस ऋषि को फांसी क्यों नहीं लग रही…क्या कारण है ?

यह निश्चित ही कोई तपस्वी है..राजा को पश्चाताप हुआ। ऋषि से क्षमा मांगी। ऋषि ने कहा, ‘‘राजन, मैं तुम्हें तो क्षमा कर दूंगा, लेकिन यमराज को क्षमा नहीं करूंगा, पूछूंगा, मुझे मृत्युदंड क्यों दिया गया ?
जब मैंने कोई पाप नहीं किया था..मैं न्यायाधीश यमराज को दंड दूंगा ?’’

अपने तपोबल से मांडव्य ऋषि यमराज की सभा में गए। यमराज से पूछा, ‘‘यमराज ! जब मैंने कोई पाप नहीं किया था,, तो मुझे मृत्युदंड क्यों दिया गया ?
मेरे किस पाप का दंड आपने दिया ?’’ ऋषि के पूछने पर यमराज भी हिल गए। यमराज ऋषि से नहीं डरे, ऋषि की तप साधना से डरे। तप से ऋषियों की देह और वचन पवित्र हो जाते हैं। इसीलिए, जो कह देते हैं, हो जाता है…तप ही व्यक्ति को पवित्र करता है..भक्ति ही आदमी को पवित्र करती है। ऋषि का प्रश्न सुन यमराज कांप गए…
कहा, ‘‘ऋषिवर, जब आप तीन वर्ष के थे, तो आपने एक तितली को कांटा चुभोया था…उसी पाप के कारण ही आपको यह दंड मिला।’’
जाने-अनजाने में जो, भी पाप किया जाए,, उसका दंड भी भुगतना ही पड़ता है। परमात्मा को पुण्य तो अर्पण किए जा सकते हैं, पाप नहीं।’’
मांडव्य ऋषि ने कहा, ‘‘शास्त्र के अनुसार यदि अज्ञानवश कोई मनुष्य पाप करता है, तो उसका दंड उसे स्वप्न में दिया जाना चाहिए। लेकिन आपने शास्त्र के विरुद्ध निर्णय किया…अज्ञानावस्था में किए गए पाप का फल आपने मुझे मृत्युदंड के रूप में दिया। आपको मेरे उस पाप का दंड मुझे स्वप्न में ही देना चाहिए था।
यमराज, तुमने मुझे गलत ढंग से शास्त्र के विरुद्ध दंड दिया है, यह तुम्हारी अज्ञानता है…इसी अज्ञान के कारण ही, मैं तुम्हें शाप देता हूं कि तुम दासी पुत्र के रूप में जन्म लो, मनुष्य योनि में जाओ।’’
मैत्रेय ऋषि कहते हैं, ‘‘बस विदुर, इसी कारण तुम्हें मनुष्य योनि में, दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ा। तुम कोई साधारण मनुष्य नहीं हो, तुम तो यमराज का अवतार हो कोई किसी की उंगली काटेगा तो उसकी ऊंगली भी एक दिन कटेगी, कोई किसी की हत्या करेगा, तो उसकी भी एक दिन हत्या होगी।
बचपन में ऋषि मांडव्य ने तितली को कांटा चुभोया था इसलिए सूली पर चढ़ना पड़ा और यदि तितली मर जाती तो ऋषि को भी मरना पड़ता ।

डा.अजय दीक्षित
Drajaidixit[at]gmail.com



यमराज को लेना पड़ा विदुर रुप में अवतार यमराज को लेना पड़ा विदुर रुप में अवतार Reviewed by Unknown on September 13, 2017 Rating: 5

No comments:

Boy or Girl Marriage Problem Upay ( लड़के / लड़की के शीघ्र विवाह हेतु सरल उपाय)

वैवाहिक समस्या एक ऐसी समस्या है कि व्यक्ति के जीवन को पूर्णतः कष्टदायी और संघर्षमयी बना देती है। Boy or Girl Marriage Problem Upay ...

Powered by Blogger.